उस क्रिकेट माडल ने टीवी वाले पत्रकारों के साथ बदतमीजी की। यह खबर भी टीवी चैनल वालों ने दी हैं। क्रिकेट माडल यानि वह खिलाड़ी जो खेलने के साथ ही विज्ञापन में भी करते हैं। अब टीवी चैनल वाले उस पर शोर मचा रहे हैं कि उसने ऐसा क्यों किया?’
अब उनका यह प्रलाप भी उस तरह प्रायोजित है जैसा कि उनके समाचार या वास्तव में ही वह दुःखी हैं, कहना कठिन हैं। एक जिज्ञासु होने के नाते समाचारों में हमारी दिलचस्पी है पर टीवी समाचार चैनल वाले समाचार दिखाते ही कहां हैं?
इस मामले में उन पर उंगली भी कोई नहीं उठाता। कहते हैं कि हमारा चैनल समाचारों के लिये बना है। टी.आर.पी रैटिंग में अपने नंबरों के उनके दावे भी होते हैं। इस पर आपत्ति भी नहीं की जानी चाहिये पर मुद्दा यह है कि उनको यह सम्मान समाचार के लिये नहीं बल्कि मनोंरजन के लिये मिलता है ऐसे में जो चैनल केवल समाचार देते हैं उनका हक मारा जाता है। सच तो यह है कि अनेक समाचार चैनल तो केवल मनोरंजन ही परोस रहे हैं पर अपनी रेटिंग के लिये वह समाचार चैनल की पदवी ओढ़े रहते है। अगर ईमानदारी से ऐसे मनोरंजन समाचार चैनल का सही आंकलन किया जाये तो उनको पूर्णतः समाचार और मनोरंजन चैनलों के मुकाबले कोई स्थान ही नहीं मिल सकता। अलबत्ता यह खिचड़ी चैनल है और उनके लिये कोई अलग से रैटिंग की व्यवस्था होना चाहिए।
जिस क्रिकेट माडल ने उनको फटकारा वह खिचड़ी चैनलों के चहेतोें में एक है। अपने इन मनोरंजक समाचार चैनलों के पास फिल्मी अभिनेताओं, अभिनेत्रियों और क्रिकेट खिलाड़ियों के जन्म दिनों का पूरा चिट्ठा है। जिसका वह रोज उपयोग करते हैं। उस दिन जन्म दिन वाला फिल्मी और क्रिकेट माडल तो संभवतः इतना बिजी रहता होगा कि वह शायद ही उनके प्रसारण देख पाता हो। इससे भी मन नहीं भरता तो प्रायोजित इश्क भी करवा देते हैं-समाचार देखकर तो यही लगता है कि कभी किसी अभिनेत्री को क्रिकेट खिलाड़ी से तो कभी अभिनेता से इश्क करवाकर उसका समाचार चटखारे लेकर सुनाते हैं।
यह मनोरंजक समाचार चैनल जो खिचड़ी प्रस्तुत करते हैं वह प्रायोजित लगती है। अब भले ही उस क्रिकेट माडल ने टीवी पत्रकार को फटकारा हो पर उसका प्रतिकार करने की क्षमता किसी में नहीं है। वजह टीवी चैनल और क्रिकेट माडल के एक और दो नंबर के प्रायोजक एक ही हैं। अगर चैनल वाले गुस्से में उसे दिखाना बंद कर दें या उसकी खिचड़ी लीलाओं-क्रिकेट से अलग की क्रियाओं- का बहिष्कार करें तो प्रायोजक नाराज होगा कि तुम हमारे माडल को नहीं दिखा रहे काहे का विज्ञापन? उसका प्रचार करो ताकि उसके द्वारा अभिनीत विज्ञापन फिल्मों के हमारे उत्पाद बाजार में बिक सकें।
खिलाड़ी स्वयं भी नाराज हो सकता है कि जब मेरी खिचड़ी गतिविधियों-इश्क और जन्मदिन कार्यक्रम- का प्रसारण नहीं कर रहे तो काहे का साक्षात्कार? कहीं उसके संगी साथी ही अपने साथी के बहिष्कार का प्रतिकार उसी रूप में करने लगे तो बस हो गया खिचड़ी चैनलों का काम? साठ मिनट में से पचास मिनट तक का समय इन अभिनेताओं, अभिनेत्रियों और क्रिकेट खिलाड़ियों की खिचड़ी गतिविधियों के कारण ही इन चैनलों का समय पास होता है। अगर आप इन चैनल वालों से कहें कि इस तरह के समाचार क्यों दे रहे हैं तो यही कहेंगे कि ‘दर्शक ऐसा हीं चाहते हैं’। अब इनसे कौन कहे कि ‘तो ठीक है तो अपने आपको समाचार की बजाय मनोरंजन चैनल के रूप में पंजीकृत क्यों नहीं कराते।’
हो सकता है कि यह कहें कि इससे उनको दर्शक कम मिलेंगे क्योंकि अधिकतर समाचार जिज्ञासु फिर धोखे में नहीं फंसेंगे न! मगर इनके कहने का कोई मतलब नहीं है क्योकि सभी जानते हैं कि यह चैनल दर्शकों की कम अपने प्रायोजकों को की अधिक सोचते हैं। यह उनका मुकाबला यूं भी नहीं कर सकते क्योंकि जो इनके सामने जाकर अपमानित होते हैं वह पत्रकार सामान्य होते हैं। उनमें इतना माद्दा नहीं होता कि वह इनका प्रतिकार करें। उनके प्रबंधक तो उनके अपमान की चिंता करने से रहे क्योंकि उनको अपने प्रायोजक स्वामियों का पता है जो कि इन फिल्म और खेलों के माडलों के भी स्वामी है।
वैसे आजकल तो फिल्म वाले क्रिकेट पर भी हावी होते जा रहे हैं। पहले फिल्म अभिनेत्रियां अपने प्रचार के लिये कोई क्रिकेट खिलाड़ी से इश्क का नाटक रचती थीं पर वह तो अब टीम ही खरीदने लगी हैं जिसमें एक नहीं चैदह खिलाड़ी होते हैं और उनकी मालकिन होने से प्रचार वैसे ही मिल जाता है। क्रिकेट, फिल्म और समाचार की यह खिचड़ी रूपरेखा केवल आम आदमी से पैसा वसूलने के लिये बनी हैं।
क्रिकेट खिलाड़ी और फिल्म अभिनेता अभिनेत्रियां करोड़ों रुपये कमा रहे हैं और उसका अहंकार उनमें आना स्वाभाविक है। उनके सामने दो लाख या तीन लाख माहवार कमाने वाले पत्रकार की भी कोई हैसियत नहीं है ओर फिर उनको यह भी पता है कि अगर इन छोटे पत्रकारों को फटकार दिया तो क्या बिगड़ने वाला है? उनके प्रबंधक भी तो उसी प्रायोजित धनसागर में पानी भरते हैं जहां से हम पीते हैं।
इधर हम सुनते आ रहे हैं कि विदेशों में एक चैनल के संवाददाता ने अपनी सनसनी खेज खबरों के लिये अनेक हत्यायें करा दी। हमारे देश में ऐसा हादसा होना संभव नहीं है पर समाचारों की खिचड़ी पकाने के लिये चालबाजियां संभव हैं क्योंकि उनमें कोई अपराधिक कृत्य नहीं होता। इसलिये लगता है जब कोई खेल या फिल्म की खबर नहीं जम रही हो तो यह संभव है कि किसी प्रायोजक या उसके प्रबंधक से कहलाकर फिल्मी और क्रिकेट माडल से ऐसा व्यवहार कराया जाये जिससे सनसनी फैले। हमारे देश के संचार माध्यमों के कार्यकर्ता पश्चिम की राह पर ही चलते हैं और यह खिचड़ी पकाई गयी कि फिक्स की गयी पता नहीं।
अब यह तो विश्वास की बात हो गयी। वैसे अधिकतर टीवी पत्रकार आम मध्यमवर्गीय होते हैं उनके लिये यह संभव नहीं है कि स्वयं ऐसी योजनायें बनाकर उस पर अमल करें अलबता उनके पीछे जो घाघ लोग हैं उनके लिये ऐसी योजनायें बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है। यही कारण है कि खिचड़ी समाचार ही पूर्ण समाचार का दर्जा पाता है।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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